फिर विस्थापन
हा -हा- हा- हा- हा !
मै तुम्हारा अतीत हूँ !
क्या कमाल की बात है!
मुझे यक़ीन नहीं हो रहा!
पर तेरे लिए भयभीत हूँ,
कि ये फिर से हो रहा है।
हाँ ! हाँ! ये एक बार फिर हो रहा है,
फिर से खड़े हो विस्थापन के कगार पर,
मुझे पता था,
फिर से तुम चलोगे अंगार पर,
तुम्हारी यही नियति है,
ये तो ज़ुल्मों की अति है।
इसमें तुम्हारी नहीं कोई गलती है ,
उनकी है.,
फिर भी तुम्हारी ही गलती है,
कि तुम सीधे- सादे जीव हो।
तुम शान्ति पसंद हो,
सबकुछ के लिए रजामंद हो,
प्रकति पूजक हो।
तुम सरल मिज़ाज़ के,
खेत खलिहानों के सृजक हो,
प्रकृति में समाहित हो,
अक्सर खदेड़े जाते हो,
जब जीवन में कुछ पाने लगते हो,
उजाड़ दिए जाते हो,
नया फिर कहीं ठिकाना बनाते हो,
पसीने बहाकर,
फिर से गृहस्ति बसाकर,
तुम कृषक व् सृजक हो,
विध्वंसक नहीं,
कंगाली में भी ईमानदार हो,
मेहनत से ही पेट भरते हो,
फिर क्या है जो इस कदर,
बार- बार विस्थापन के शिकार हो।
अबकी बार तुमपे गंभीर इल्जाम है।
कि तुम अपने ही जंगल व् प्रकृति के दुश्मन हो,
जबकि जंगल तुम्हारा घर है,
प्रकृति तुम्हारी पूज्य आराध्य है,
सदियों पहले तुमने शरण पायी थी,
घनघोर डरावने बीहड़ जंगलों में,
कठिन जीविका पर भी सन्तुष्ट थे,
अब इन्होंने शहरों को जीने लायक न रखा,
तो तुम्हारी शुद्ध हवादार वातावरण को लेना चाहते
ये घोषित कर के,
कि तुम अपने घर के भक्षक हो।
इसलिए तुम्हे अपने घर रहने का,
कोई अधिकार नहीं बनता,
जिस वन- उपवन में तुमने,
जन्म लेकर जीवन गुजारा सदियों से,
अपने मूल स्थल से निकाले जाकर,
जिस वन को तुमने समझा,
प्रकृति के हर चीज़ को,
अपने अपने टोटम बनाकर,
रक्षा की सदा- सर्वदा।
अब तुम्हे उन्ही का विनाशक बताकर,
बेदखल करना है फिर वहां से।
पर अब जाओगे किधर को,
शरण लेने को अब कौन सी जगह है?
क्या है ऐसी जगह बोलो?
शायद एक है जगह बची,
जो चिर शांति स्थल है,
वहां तो जाना है सबको एक दिन,
शायद तुम्हे इसबार वहीँ खदेड़ा जाना है।
तैयार हो क्या तुम?
या-
इसबार कुछ करोगे?
सोचो वो तो सांस लेते हैं,
तुम्हारी बचाई जंगलों की वजह से,
उनके बच्चे झूलते हैं झूलों पर,
तुम्हारी रोपी हुई पेड़ों के डाल पर,
पत्नियां क्रीड़ा उनकी करती हैं,
बारिस जब तुम बुलाते हो।
माँ- बाप उनके खोजते आध्यात्म,
तुम्हारी बनाई शान्ति वन पर,
वो पैसे की खेती बोते,
वन जंगल कटवा कर,
नीति नियम को धन बल से साधकर,
उद्योग खदान के नाम पर,
देकर तुमको मजदूरी रोजगार,
कहते वो अर्थव्यवस्था मजबूत कर,
देश को आगे बढ़ा रहे हैं।
बात जबकि उलट है,
संशाधन बेच वो आमिर हुए हैं,
तुम जान समझ न पाए,
क्योंकि तालीम न दी तुम्हे किसी ने,
यही सोचकर कि,
वक्त आने पर फिर तुम्ही काम आओगे उनके,
करोगे वैसा ही जैसा ये चाहेंगे,
उठा न सकोगे अपनी आवाज,
यही है बड़ा मलाल कि,
जब मददगार कोई बताये तुम्हे कि,
कैसे तुम ठगे जाते हो,
तो-
उनको देश द्रोही बताकार,
जेल का रास्ता दिखाते,
क्या करोगे ऐसे में बोलो?
न करोगे क्या प्रस्थान थक कर?
दूसरी उस दुनिया की ओर,
आ न सकोगे जहाँ से लौटकर।
या -
कुछ करोगे इस बार ?
देखो! अब तुम अकेले तो हो नहीं,
बस एक बन जाओ मिलकर,
डट जाओ अलग-अलग मोर्चों पर,
अपने एक कदम तो बढ़ाओ,
गुरिल्ला की भांति लड़ो,
बाज़ की तरह झपटो,
शेर की भांति पंजे मारो,
सांप की तरह डस कर छुप जाओ,
मज़बूरी है तुम्हारी,
लड़ न सकोगे आमने- सामने,
ख़त्म कर दिए जाओगे।
इसलिए अब बांसुरी न बजाओ,
अखाड़े में छोड़ दो झूमना,
सांस जोड़कर फूंको नरसिंघा,
गूंजने दो रणभेरी हुंकार,
सुनने दो दुनिया को दहाड़ और ललकार,
बहुत हो गया अब,
गर जाना ही है इस जहान से,
तो चुपचाप क्यों जाना है,
बता दो कि हिस्सा हो तुम भी पृथ्वी के।
इन्होनें किया नजरअंदाज तुम्हे,
तुम क्यों सोचो फिर इनके लिए,
जैसे को तैसा होने दो,
कदम न पीछे मोड़ो ,
लड़ाते हैं तुम्हे ये अपनों में ही,
बहक तुम जाते इनकी बातों में,
विवेक के अपने द्वार तो खोलो,
चाल इनकी बूझकर इन्हे तोलो,
बहुत बड़ी साजिश है ये हाँ !
इसबार इनकी कोशिश है कि,
सदा -सर्वदा तुम गुलाम हो जाओ,
बर्बाद हो मिट जाओ छोड़कर सब अपना,
कहते गंवार हो तुम अनपढ़,
गंदे बदबूदार और जंगली,
समझ नहीं तुम्हे रत्ती भर,
तुम्हारी मिल्कियत वन जंगल पर,
गड़ी है अब इनकी नजर,
ये अंग्रेजों से हैं बदतर,
तुम्हे फिर से लूटने आये हैं,
जाओगे कहाँ अब तुम बचकर,
मिटा देंगे तुम्हे ये कुचलकर,
क्या सोचते हो। जल्दी करो,
कमान में अपने तीर भरो,
आगे बढ़ो अब न डरो,
मरना ही है तो लड़कर मरो।
क.बो.
हा -हा- हा- हा- हा !
मै तुम्हारा अतीत हूँ !
क्या कमाल की बात है!
मुझे यक़ीन नहीं हो रहा!
पर तेरे लिए भयभीत हूँ,
कि ये फिर से हो रहा है।
हाँ ! हाँ! ये एक बार फिर हो रहा है,
फिर से खड़े हो विस्थापन के कगार पर,
मुझे पता था,
फिर से तुम चलोगे अंगार पर,
तुम्हारी यही नियति है,
ये तो ज़ुल्मों की अति है।
इसमें तुम्हारी नहीं कोई गलती है ,
उनकी है.,
फिर भी तुम्हारी ही गलती है,
कि तुम सीधे- सादे जीव हो।
तुम शान्ति पसंद हो,
सबकुछ के लिए रजामंद हो,
प्रकति पूजक हो।
तुम सरल मिज़ाज़ के,
खेत खलिहानों के सृजक हो,
प्रकृति में समाहित हो,
अक्सर खदेड़े जाते हो,
जब जीवन में कुछ पाने लगते हो,
उजाड़ दिए जाते हो,
नया फिर कहीं ठिकाना बनाते हो,
पसीने बहाकर,
फिर से गृहस्ति बसाकर,
तुम कृषक व् सृजक हो,
विध्वंसक नहीं,
कंगाली में भी ईमानदार हो,
मेहनत से ही पेट भरते हो,
फिर क्या है जो इस कदर,
बार- बार विस्थापन के शिकार हो।
अबकी बार तुमपे गंभीर इल्जाम है।
कि तुम अपने ही जंगल व् प्रकृति के दुश्मन हो,
जबकि जंगल तुम्हारा घर है,
प्रकृति तुम्हारी पूज्य आराध्य है,
सदियों पहले तुमने शरण पायी थी,
घनघोर डरावने बीहड़ जंगलों में,
कठिन जीविका पर भी सन्तुष्ट थे,
अब इन्होंने शहरों को जीने लायक न रखा,
तो तुम्हारी शुद्ध हवादार वातावरण को लेना चाहते
ये घोषित कर के,
कि तुम अपने घर के भक्षक हो।
इसलिए तुम्हे अपने घर रहने का,
कोई अधिकार नहीं बनता,
जिस वन- उपवन में तुमने,
जन्म लेकर जीवन गुजारा सदियों से,
अपने मूल स्थल से निकाले जाकर,
जिस वन को तुमने समझा,
प्रकृति के हर चीज़ को,
अपने अपने टोटम बनाकर,
रक्षा की सदा- सर्वदा।
अब तुम्हे उन्ही का विनाशक बताकर,
बेदखल करना है फिर वहां से।
पर अब जाओगे किधर को,
शरण लेने को अब कौन सी जगह है?
क्या है ऐसी जगह बोलो?
शायद एक है जगह बची,
जो चिर शांति स्थल है,
वहां तो जाना है सबको एक दिन,
शायद तुम्हे इसबार वहीँ खदेड़ा जाना है।
तैयार हो क्या तुम?
या-
इसबार कुछ करोगे?
सोचो वो तो सांस लेते हैं,
तुम्हारी बचाई जंगलों की वजह से,
उनके बच्चे झूलते हैं झूलों पर,
तुम्हारी रोपी हुई पेड़ों के डाल पर,
पत्नियां क्रीड़ा उनकी करती हैं,
बारिस जब तुम बुलाते हो।
माँ- बाप उनके खोजते आध्यात्म,
तुम्हारी बनाई शान्ति वन पर,
वो पैसे की खेती बोते,
वन जंगल कटवा कर,
नीति नियम को धन बल से साधकर,
उद्योग खदान के नाम पर,
देकर तुमको मजदूरी रोजगार,
कहते वो अर्थव्यवस्था मजबूत कर,
देश को आगे बढ़ा रहे हैं।
बात जबकि उलट है,
संशाधन बेच वो आमिर हुए हैं,
तुम जान समझ न पाए,
क्योंकि तालीम न दी तुम्हे किसी ने,
यही सोचकर कि,
वक्त आने पर फिर तुम्ही काम आओगे उनके,
करोगे वैसा ही जैसा ये चाहेंगे,
उठा न सकोगे अपनी आवाज,
यही है बड़ा मलाल कि,
जब मददगार कोई बताये तुम्हे कि,
कैसे तुम ठगे जाते हो,
तो-
उनको देश द्रोही बताकार,
जेल का रास्ता दिखाते,
क्या करोगे ऐसे में बोलो?
न करोगे क्या प्रस्थान थक कर?
दूसरी उस दुनिया की ओर,
आ न सकोगे जहाँ से लौटकर।
या -
कुछ करोगे इस बार ?
देखो! अब तुम अकेले तो हो नहीं,
बस एक बन जाओ मिलकर,
डट जाओ अलग-अलग मोर्चों पर,
अपने एक कदम तो बढ़ाओ,
गुरिल्ला की भांति लड़ो,
बाज़ की तरह झपटो,
शेर की भांति पंजे मारो,
सांप की तरह डस कर छुप जाओ,
मज़बूरी है तुम्हारी,
लड़ न सकोगे आमने- सामने,
ख़त्म कर दिए जाओगे।
इसलिए अब बांसुरी न बजाओ,
अखाड़े में छोड़ दो झूमना,
सांस जोड़कर फूंको नरसिंघा,
गूंजने दो रणभेरी हुंकार,
सुनने दो दुनिया को दहाड़ और ललकार,
बहुत हो गया अब,
गर जाना ही है इस जहान से,
तो चुपचाप क्यों जाना है,
बता दो कि हिस्सा हो तुम भी पृथ्वी के।
इन्होनें किया नजरअंदाज तुम्हे,
तुम क्यों सोचो फिर इनके लिए,
जैसे को तैसा होने दो,
कदम न पीछे मोड़ो ,
लड़ाते हैं तुम्हे ये अपनों में ही,
बहक तुम जाते इनकी बातों में,
विवेक के अपने द्वार तो खोलो,
चाल इनकी बूझकर इन्हे तोलो,
बहुत बड़ी साजिश है ये हाँ !
इसबार इनकी कोशिश है कि,
सदा -सर्वदा तुम गुलाम हो जाओ,
बर्बाद हो मिट जाओ छोड़कर सब अपना,
कहते गंवार हो तुम अनपढ़,
गंदे बदबूदार और जंगली,
समझ नहीं तुम्हे रत्ती भर,
तुम्हारी मिल्कियत वन जंगल पर,
गड़ी है अब इनकी नजर,
ये अंग्रेजों से हैं बदतर,
तुम्हे फिर से लूटने आये हैं,
जाओगे कहाँ अब तुम बचकर,
मिटा देंगे तुम्हे ये कुचलकर,
क्या सोचते हो। जल्दी करो,
कमान में अपने तीर भरो,
आगे बढ़ो अब न डरो,
मरना ही है तो लड़कर मरो।
क.बो.
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