शनिवार, 4 मई 2019

न जाने वो कैसा कोहरा था?



सिर्फ कुछ कदम ही तो साथ चले,
लगाकर तुमने मुझको गले,
तेरी बाँहों में आकर जब मेरे सपने पले,
गए सोता छोड़ मुझे तुम अनजान दरख़्तों तले।

तुमसे मिलकर सफर जब मैंने शुरू किया था,
छोड़कर अपना सबकुछ तुम्हारा साथ दिया था।

अपने तो सभी छूटे,अब तुम भी छोड़ चले हो,
बिन बताये ये रिश्ता कैसे तोड़ गए हो ?

अब घर लौटूं कैसे रास्ता सिर्फ आंसुओं से भरा है,
जाऊँ किसके पास मन बहुत डरा डरा है।

लाखों में एक मासूम वो तेरा ही चेहरा था,
असलियत देख न सकी न जाने कैसा कोहरा था।

जरा सा भी वक्त न दिया तुमने कुछ सोचने का,
ऐसा ही करना था तो किया क्यों वादा साथ निभाने का।


क. बो.

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