भारी लज्जा के मारे
धन्य -धन्य भाग्य हमारे,
तुम जो यहाँ पधारे,
जब से सुना है तुम्हारे बारे,
खुद को तभी से तुमपे हैं वारे।
भारी लज्जा के मारे,
झुके हुए मेरे नैन बेचारे,
तेरे रौनक से हारे,
मेरे बदन के सितारे।
रोम -रोम उत्तेजित हो सारे,
जैसे कर रहे हों ईशारे,
सुरमई वो शाम के नज़ारे,
मन मोह रहे सतरंगी फव्वारे।
नीलाभ क्षितिज के उस किनारे,
जीवित हूँ तेरी स्मृति के सहारे,
निःशब्द हो मन मंदिर के द्वारे,
तेरी सूरत निहारूं मेरे प्यारे।
--क. बो.
१७. ०२. २००१
धन्य -धन्य भाग्य हमारे,
तुम जो यहाँ पधारे,
जब से सुना है तुम्हारे बारे,
खुद को तभी से तुमपे हैं वारे।
भारी लज्जा के मारे,
झुके हुए मेरे नैन बेचारे,
तेरे रौनक से हारे,
मेरे बदन के सितारे।
रोम -रोम उत्तेजित हो सारे,
जैसे कर रहे हों ईशारे,
सुरमई वो शाम के नज़ारे,
मन मोह रहे सतरंगी फव्वारे।
नीलाभ क्षितिज के उस किनारे,
जीवित हूँ तेरी स्मृति के सहारे,
निःशब्द हो मन मंदिर के द्वारे,
तेरी सूरत निहारूं मेरे प्यारे।
--क. बो.
१७. ०२. २००१
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