रविवार, 15 सितंबर 2019

एक मुहूर्त है तू


कहाँ है तू ?  कहाँ है तू ? कहाँ है तू ?
मालिक मेरे, किधर है तू, नहीं मुझे खबर,
डगर-डगर ढूंढे तुझे, भटक-भटक मेरी नजर।

सवांरता, बनाता तू  तक़दीर की लकीरों को,
भरता है रंग, जोड़कर टूटी हुई तस्वीरों को,
फूलों औ भंवरों में जो होता, मुहब्बत वही है तू ,
कहाँ है तू ?  कहाँ है तू ? कहाँ है तू ?
हमें तेरी जरुरत है, कहाँ है तू ?

दुनिया करती वो जो पहले से तूने तय किया है,
जख्म देके मरहम भी, तूने ही तो दिया है,
दुल्हन के हाथों लगी मेहँदी की चटक सुर्ख रंग है तू ,
कहाँ है तू ?  कहाँ है तू ? कहाँ है तू ?
हमें तेरी जरुरत है, कहाँ है तू ?

समंदर के गर्भ में तूफ़ान की, आहट जब आती है,
लहरें किनारे से मिलके, पाँव उसके धोती हैं,
मझधार में नैय्या को हवा, उछाल-उछाल झुलाती हैं,
रहता है इन्तजार सभी को, वही एक मुहूर्त है तू ,
कहाँ है तू ?  कहाँ है तू ? कहाँ है तू ?
हमें तेरी जरुरत है, कहाँ है तू ?

क.बो. 

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एक मुहूर्त है तू कहाँ है तू ?  कहाँ है तू ? कहाँ है तू ? मालिक मेरे, किधर है तू, नहीं मुझे खबर, डगर-डगर ढूंढे तुझे, भटक-भटक मेरी नजर। ...