तुम्हारी लगाई आग में
फूल तो फिर खिल जायेंगे बहार आने पर बाग़ में,
पर मेरा तो सब राख हुआ तुम्हारी लगाई आग में।
गुजर बसर कर रहा था जिंदगी भले तन्हाई में,
तुमने ही मुझको घेरा था आकर मेरी तरुणाई में।
छला मेरे सपनों को बदलकर बुलबुलों के झाग में,
और मेरा सब राख हुआ तुम्हारी लगाई आग में।
दिन मुझे वो याद है दिल तोड़ा था तुमने जुलाई में,
ढोते फिर रहे जिंदगी तब से तेरी बेवफाई में।
क्यों कर रहे हो इजाफा दामन में लगे दाग में,
बची हुई राख को फिर से झोंक रहे आग में।
चिंगारी को आग बनाने वाले क्या तुम कभी न जलोगे,
अंगारों के घूंसे, लपटों की चाबुक कभी तुम भी सहोगे।
रोओगे उस दिन फैसला जब होगा मेरे भाग में,
भले आज मेरा कुछ न बचा तुम्हारी लगाई आग में।
क. बो.
२२. १२.२००५
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