रविवार, 5 मई 2019



नई पीढ़ी का क्या होगा

         क्यों सुनील भाई! बड़े उदास लग रहे हो आज, तबियत तो ठीक है न? अरे यार राजन, तबियत तो ठीक है पर क्या करें बच्चों के कारण परेशान हो गया हूँ, पता नहीं क्या होगा इस नई पीढ़ी का। कितना भी समझाओ पर समझते ही नहीं। उनको लगता है हम उनके दुश्मन है जो बार-बार उन्हें टोकते रहते है। हाँ भाई सुनील! एकदम ठीक बोल रहे हो। आजकल अधिकतर माँ-बाप, गार्जियन व् बड़े-बुजुर्ग इसी बात से चिंतित है। मगर इसमें कई बातें हैं जैसे-आजकल के माहौल में हर परिवार में माता-पिता, बड़े बुजुर्ग गार्जियन की जिम्मेदारी पुराने ज़माने के माता पिताओं की तुलना में कई गुना बढ़ गई है। इसके साथ ही आसपड़ोस में, समुदायों व् स्कूलों में भी लोगों और शिक्षकों की जिम्मेदारियाँ बढ़ गई हैं।  अगर बिलकुल छोटी उम्र से बच्चे को अनुशासन के साथ खानपान, शारीरिक क्रियाकलाप, धार्मिक व् आध्यात्मिक जीवन, साम्प्रदायिक एकताटेलीविजन, स्मार्टफोन, इंटरनेट आदि के इस्तेमाल के लाभ-हानि को बताया जाय तो काफी हद तक हम नई पीढ़ी को भविष्य में एक अच्छे समाज के निर्माण के लिए तैयार कर सकते है।  मगर दुःख की बात है कि हम खुद बच्चों को जरुरत से ज्यादा प्यार देकर, सुख-सुविधा देकर, कई बातों में लापरवाही बरतकर, उनकी हर मांग पूरी करते-करते यह नहीं जान पाते कि हमारे बच्चे कब हमारे नियंत्रण से बाहर होने लग जाते हैं। ये बातें मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि हम सब लोग चाहते हैं कि अपने बच्चों को बहुत प्यार-दुलार से लालन-पालन करें, और ये भी चाह्ते हैं कि उनको कुछ कष्ट न हो, किसी बात की कमी न हो।  एक बार एक बच्चे के माता-पिता अपने बच्चे के स्कुल में पीटीएम के दौरान क्लास टीचर से बात करते समय अपने बच्चे द्वारा उनकी आज्ञा नहीं मानने, हर वक्त टीवी, इंटरनेट, ऑनलाइन गेम्स, सोशल मीडिया आदि में लगे रहने, घर पर बना दाल-रोटी-सब्जी न खाकर हमेशा बाहर के चीजें खाने आदि के बारे बता कर बच्चे को समझाने कहते हैं तो क्लास टीचर ने कहा कि वह बच्चों को इन बातों के बारे बताती रहती है क्योंकि उसके भी बच्चे हैं घर पर और वह भी अपने बच्चों के ऐसी हरकतों व् इंटरनेट, स्मार्टफोन में हर वक्त गेम सोशल मीडिया में समय बर्बाद करने को लेकर खुद भी परेशान होती है।  क्लास में तो वह बच्चों को बता सकती है मगर असली शिक्षा तो घर पर माता-पिता ही दे सकते हैं, उन्हें इन सब चीजों से दूर रख कर क्योंकि इस उम्र में बच्चों में थोड़ा-थोड़ा करते कब इन सबकी लत लग जाती है पता नहीं लगता है। 
          दूसरी बात ये भी है कि अगर आपने बच्चे को घर पर तो इन चीजों से दूर रखा है मगर क्या आस-पड़ोस में रहने वाले उसके दोस्त-यार या स्कूलों के दोस्त-यार आपस में जब बाते करते होंगे कि स्मार्टफोन, टीवी व् इंटरनेट पर क्या देखा और क्या मजा लिया तो आपके बच्चे में भी उत्सुकता लालसा बढ़ती होगी और बच्चे के दिमाग में इसका असर तो पड़ेगा ही और मन ही मन उसमे भी इनके प्रति इच्छाएं पैदा होंगी और बच्चा सोचेगा कि बाकी बच्चों के घर पर इन सबके लिए मना नहीं किया जाता तो उनके माता पिता क्यों ऐसा करते हैं? इसलिए हमें घर के बाहर में भी ऐसा ही सुधारवादी वातावरण बनाने के लिए आसपड़ोस में भी माता-पिता, बड़े बुजूर्गों का छोटा ग्रुप बनाकर या लघु ख्रीस्तीय समुदाय में बातें कर बच्चों पर नजर रखनी होगी कि उन्हें केवल पढाई-लिखाई ही नहीं बल्कि, उनके समुचित विकास पर ध्यान देना होगा इन बातों पर जोर देकर जैसे- जंक फ़ूड छोड़कर घर पर बना दाल-सब्जी रोटी- अनाज व् अन्य पौष्टिक चीजों को खाने -पीने की आदत डालना, घर के बाहर के खेल-कूद के लिए उन्हें प्रेरित करना, सोशल मीडिया, टीवी, मोबाईल से चिपके रहने के बजाय घर पर आये नाते-रिश्तेदारों, मेहमानों के साथ बैठकर उनसे मिलनाबातें करना व् उनकी और बड़े बुजुर्गों, माता पिता आदि के बीच होनेवाले बातों में शामिल होकर दुनियादारी की बातों को सुनना-समझना, सामाजिक मूल्यों मानवीय रिश्तों को समझना, रीति रिवाजों व् सांस्कृतिक विरासत को जानना-समझना, नियमित मिस्सा-प्रार्थना-पूजा, धर्म क्लास में भाग लेते हुए विश्वास मजबूत बनाना आदि। अगर हम इन बातों पर नहीं अमल करेंगे तो आगे चलकर ये समाज कैसा होगा। जब हम बूढ़े हो जायेंगे तो ये सब देख कर बहुत कष्ट होगा हम सबको। क्योंकि तब हम कुछ कर पाएंगे। बच्चे बड़े होकर अपना घर-परिवार, काम-धंधे में व्यस्त होकर हमारी क्या देखभाल कर पाएंगे जब उनमें हम सबने अच्छी बातों का विकास ही किया होगा। और सोचो, हमें वृद्धाश्रम में डाल देंगे वो। जंक फ़ूड खाकर, शारीरिक निष्क्रियता, मानसिक तनाव व् चिड़चिड़ेपन से वो खुद बहुत जल्द बिमारियों का शिकार हो जायेंगे तो कैसे हमारे बुढ़ापे में वो देखभाल करेंगे। और तो और, आनेवाले दिनों में आपसी रिश्तों से दूर होते जाने, आध्यात्मिक व् धार्मिक नीव कमजोर होने से दाम्पत्य जीवन में परस्पर अविश्वास के माहौल में पारिवारिक अलगाव-विखराव और तलाक जैसे चीजों से हमारे संतान कैसा जीवन जीयेंगेजरा सोचिये तो। स्कूलों-कॉलेजों व् अन्य संस्थानों से बच्चे अपने पढाई कर पर्यावरण संरक्षण, स्वछता आदि के बारे सीखते हुए अपना रोजगार व् नौकरी पा तो लेंगे मगर निज़ी दैनिक जीवन में स्वस्थ मन, स्वस्थ आत्मा व् स्वस्थ शरीर ही रहेगा तो सोचो कैसा होगा आने वाली पीढ़ियों का सामाज। जब खुद ही नई पीढ़ी इन बातों में कमजोर होती जायगी पीढ़ी दर पीढ़ी तो वे अपने होने वाले बच्चों को क्या सीखा पाएंगे इन बातों को।  अथार्थ इन बातों का सारांश यही है कि हमें अपनी पीढ़ी से ही शुरुआत करनी होगी नई  पीढ़ी के समुचित विकास के लिए। 
            मगर भाई, एक बात बोलूं, देखो सभी माता-पिता, गार्जियन, बड़े-बुजुर्ग यही चाहते हैं मगर ऐसा कहाँ हो पाता है सब चाहते हुए भी। ये सब कहना आसान है करना नहीं समझे।  सुनील एक जम्हाई लेते हुए बोला। इसपर राजन मुस्कुरा कर बोला -मैं आपके इस बात से सहमत नहीं हूँ यार!  सच्चाई कड़वी होती है देखो, करना आसान क्यों नहीं है ये। सबसे पहले तो हमें ही अपने-अपने आचरण से उदहारण पेश करना होगा, हमें भी खुद पर नियंत्रण रखना होगा और छोटे स्तर पर खुद के घर से शुरुआत करते हुए, फिर एक-दो परिवार साथ जुड़करफिर आस-पड़ोस के लोगों या लघु ख्रीस्तीय समुदाय के लोगों से मिलकर, फिर धीरे-धीरे स्कूलों के शिक्षकों, धर्म क्लास शिक्षकों, धर्म गुरुओंसामाजिक कार्यकर्ताओं को शामिल कर, अन्य समुदायों को साथ लेकर, फिर धीरे-धीरे दायरा बढ़ाते हुए, बड़े क्षेत्र स्तर पर, फिर जिला स्तर पर, राज्य स्तर पर, फिर राष्ट्रीय स्तर पर अपना अभियान को ले चलना  होगाक्योंकि ये केवल एक व्यक्ति का काम नहीं पुरे समाज का सामूहिक कर्तव्य व् जिम्मेदारी है।  भविष्य में शांतिपूर्ण घर-परिवार, शांतिपूर्ण समाज व् देश के लिए और पूरी दुनिया ले लिए ये बहुत जरुरी है। एकजुट होकर बड़ी संख्या में हम जरुरत पड़ने पर आगे चलकर स्थानीय प्रसाशन से, फिर सरकार से इन सबके बारे नियम-कानून व् नीति-निर्धारण की माँग भी कर सकते हैं।  एक-एक कर धीरे-धीरे हम बहुत से लोगों को इस पुण्य और जरुरी काम में जोड़ सकते है।  सिर्फ समस्या के बारे सोचते रहने से समय निकलता जायेगा और बहुत देर हो चूका होगा, जिसका खामियाजा हम हर एक को अपने बुढ़ापे में भुगतना पड़ेगा ही, दिक्कत होगी आनेवाली पीढ़ियों को भी, और इसके लिए हम सब जिम्मेदार होंगे कि हमने क्या किया, क्या दिया हमारे बाद आई पीढ़ी को  इसलिए नई पीढ़ी के लिए कुछ करते हुए अपने घर के स्तर पर, व् अन्य स्तर पर जो भी इस काम में शामिल होंगे, समय-समय पर उनसे बात-विचार व् समीक्षा करते रहना होगा। साथ-साथ इस काम में हमें बच्चों को, युवा वर्ग को भी साथ लेकर, उनसे समय-समय पर वाद-संवाद करते रहना होगा ताकि नई और पुरानी पीढ़ी के लोगों के बीच आपसी विश्वास, आपसी समझ व् तालमेल बने और दोनों  के बीच बढ़ती खाई कम  हो सके।  इस अभियान में बाधाएं भी कई आएँगी पर कुछ करने का जूनून हो तो सब बाधाएँसमय के साथ धीरे-धीरे दूर हो जाएँगी क्योंकि अच्छा काम के लिए अंत में अच्छी ताकतों की विजय होती है, क्योंकि इसमें ईश्वर साथ देता है।  तो आओ हम-दोनों आज से, अभी से अपने अपने घर से शुरुआत करते है, बच्चो पर उनके उचित  शारीरिक, मानसिक, धार्मिक व् आधात्मिक विकास के लिए।  अपने घर की स्थिति को लेकर शर्म और झिझक की बात मत करना, समझे दोस्त।  मेरे बच्चों से बातों विचारों के आदान-प्रदान बच्चों में सुधार के लिए जरुरत पड़ने पर मेरे घर में आपको मैं बुला सकता हूँ, और अगर आपके घर पर इस तरह की जरुरत पड़े तो इस काम के लिए तो मै तैयार हूँ समय देने के लिए।  ठीक है।  चलो। अब टेंसन छोड़ो और आज से अगर दस दिनों में एक को भी हम समझा कर अच्छा रास्ता दिखा दिया तो ऐसा करते-करते जीवन भर में कुछ लोगों को हम अच्छा बनाकर इस दुनिया से विदा लेंगे तो कितना सुकून महसूस होगा जाते जाते। हु... ठीक है चलो।  कहते हुए सुनील ने एक चैन की सांस ली जैसे उसका मन हल्का हो गया हो....  
क. बो.  




एक मुहूर्त है तू कहाँ है तू ?  कहाँ है तू ? कहाँ है तू ? मालिक मेरे, किधर है तू, नहीं मुझे खबर, डगर-डगर ढूंढे तुझे, भटक-भटक मेरी नजर। ...